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Showing posts from April, 2019

शनि जयंती पर वक्री शनि देव देंगे शनि दोष से मुक्ति

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शनि जयंती ज्येष्ठ मास की अमावस्या 3 जून सोमवार  रोहणी नक्षत्र, सुक्रमा योग में मनाई जाएगी। अमावस्या तिथि 2 जून सायं 4:39 से प्रारंभ होकर 3 जून सायं 3:31 बजे तक रहेगी। ज्योतिषाचार्य सुनील चोपड़ा ने बताया  इस बार शनि जयंती सोमवार सोमवती अमावस्या का विशेष योग बन रहा है। जो कि 4 वर्ष पहले 18 मई 2015 को बना था। शनि जयंती का पर्व सोमवार को होने से भगवान शिव व शनिदेव दोनो की प्रसन्नता के लिए उपाय कर सकते है। इस दिन भगवान शिव की साधना व शनिदेव की आराधना करने से मानसिक शांति ढय्या व साढेसाती से प्रभावित जातको को राहत मिलेगी। इसी के साथ इन दिनों शनि भी वक्री गति से चलने के कारण जो लोग शनि दोष से पीड़ित है उन्हे शनि जयंती पर शनि की पूजा व व्रत करने से शनि दोष से मुक्ति मिलेगी। शनि देव मकर व कुम्भ राशि के अधिपति है। इस समय धनु राशि मे विद्यमान है जिससे वृश्चिक राशि, धनु राशि, मकर राशि, वृषभ राशि व कन्या राशि वाले जातकों को शनि जयंती पर व्रत व शनि पूजा से अधिक लाभ होगा। शनि देव को प्रसन्न कैसे करे शनि जयंती पर शनि की प्रिय वस्तुओं का दान करना चाहिये, जैसे काला कपड़ा, काली सबूत उडद ...

जोड़ो का दर्द ज्योतिर्विज्ञान के अनुसार

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जोड़ो का दर्द जोड़ो का दर्द एक आम बात हो गई है आजकल, यह बीमारी पहले बुजुर्ग लोगो को होती थी। लेकिन अब जवान लोगो मे भी होने लगी है। जिसका कारण, खराब खान पान, तेलीय पदार्थो का अधिक सेवन, समय पर भोजन न करना, वातावरण का दूषित होना  है। जिससे पेट मे तेजाब बनता है, गैस बनती है जिसके कारन  जोड़ो का दर्द होने लगता है। जोड़ क्या है          जोड़ दो हड्डियों के मिलने से बनता है यह आपस मे कार्टिलेज से जुड़ा होता है, इसमें एक प्रकार का तरल पदार्थ होता है जिसे सायनोवियल फ्लूइड कहते है। जब कार्टिलेज टूट जाती है या घिस जाती है, या फ्लूइड कम  हो जाता है तो जोड़ो का दर्द शुरू हो जाता है।  आयुर्वेद के अनुसार शरीर मे बीमारियों के कारण वात, पित्त व कफ होता है, जिसके बढ़ने या घटने से शरीर मे बीमारियां होने लगती है। ज्योतिर्विज्ञान के अनुसार शनि ग्रह की वात प्रवर्ति होती है, मंगल ग्रह की पित्त प्रवर्ति तथा चंद्र ग्रह की कफ प्रवर्ति होती है। जब कोई ग्रह कुंडली मे खराब अवस्था मे होता है तो उस से संबंधित रोग देता है। शनि दसम भाव एवम् ग्यारवे भाव का स्वामी ...

shani ke vakriye hone par rashiyo par kya prabhav hoga

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30 अप्रैल19 को शनि होंगे वक्रीय 30 अप्रेल मंगलवार को शनि धनु राशि में वक्रीय हो जायेगे और 18 सितंबर 2019 तक वक्रीय रहेंगे। शनि 4 माह 18 दिन तक वक्रीय रहेंगे। इसी के साथ गुरुदेव बृहस्पति भी वक्री गति से धनु राशि मे गोचर कर रहे है। 22 अप्रेल को गुरुदेव वृश्चिक राशि मे पुनः पहुच जाएंगे। और 11 अगस्त को मार्गीय होकर 4 नवम्बर को वापिस धनु राशि मे प्रवेश करेंगे।                 ज्योतिषाचार्य सुनील चोपड़ा ने बताया की अशुभ ग्रह शनि के वक्रीय होने पर इसकी क्रूरता बढ़ेगी क्योकि जब क्रूर ग्रह वक्रीय होता है तो उसकी क्रूरता बढ़ती है और जब शुभ ग्रह वक्रीय होता है तो उसकी शुभता बढ़ती है। यदि आपकी कुंडली मे शनि योगकारक ग्रह है तो वह अच्छे फल देगा। शनि के वक्रीय होने से कोई नुकसान नही होगा।     शनि कर्मफल दाता होने के कारण वह किये गए कर्मो का फल देता है।     शनि के वक्रीय होने पर चंद्र राशि के अनुसार विभिन्न राशियों पर अलग अलग प्रभाव पड़ेगा। मेष राशि- मेष राशि के जातको का शनि 9वे भाव मे होगा। जिससे कैरियर व आय में परेशानी आ सकती ह...

हनुमान जयंती 19 अप्रेल को विशेष योग (hanuman jayanti)

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हनुमान जयंती 19 अप्रेल को विशेष लाभ शुक्रवार 19 अप्रेल चैत्र मास शुक्लपक्ष की पूर्णिमा को हनुमान जयंती मनाई जाएगी। इस दिन दो  योग बन रहे है पहला गजकेसरी योग और चित्र नक्षत्र  में मनाई जाएगी हनुमान जयंती ' यह दिन हनुमान जी की पूजा का सबसे बड़ा दिन माना जाता है। इस दिन मंत्रो को सिद्ध किया जाता है, और हनुमान जी की आराधना करने से विशेष फल प्राप्त होता है । भगवान हनुमान को भक्ति, जादुई शक्तियों और ऊर्जा का प्रतीक के रूप में पूजा जाता है। यही नही लोग हनुमान चालीसा व बजरंग बाण पड़ते है जिससे बुरी आत्माओं पर विजय पाने और मन को शांति प्रदान करने की क्षमता बढ़ती है। हनुमान जयंती पर क्या करें       यदि आपके जीवन मे काफी परेशानिया है जिससे आपको निजात नही मिल रही तो आप हनुमान जयंती के दिन सुबह स्नान से निर्वत होकर हनुमान जी को सिंदूरी चोला चढ़ाए, हनुमान जी पर गुलाब की माला व लाल पुष्प अर्पित करे, क्योकि लाल रंग हनुमान जी को अति प्रिय है। और हनुमान चालीसा का पाठ करे, ध्यान रहे कि हनुमान चालीसा पड़ते समय मुह हमेशा पूर्व दिशा की और होना चाहिए। जिससे आपको आपकी सभी प...

होलाष्टक 14 मार्च से 21 मार्च तक होलाष्टक से शुरू होने वाले कार्य, अपनी राशि अनुसार रंगों से खेले होली

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होलाष्टक 14 मार्च से 21 मार्च तक 20मार्च बुधवार, फाल्गुन मास की पूर्णिमा को होलिका दहन पर्व मनाया जाएगा। होलाष्टक होली पर्व की सूचना लेकर आता है। होली के आठ दिन पूर्व होलाष्टक प्रारम्भ हो जाता है। जो कि इस वर्ष 14 मार्च से प्रारंभ होगा और होलिका धुलंडी के दिन 21 मार्च तक रहेगा।         इसी के साथ होलाष्टक के मध्य दिनों में 16 संस्कारों में से किसी भी संस्कार को शुभ नही माना जाता। यहां तक कि अंतिम संस्कार करने से पूर्व शांति कार्य किया जाता है। होलीका दहन का शुभ मुहूर्त 20 मार्च बुधवार को रात्रि 8:20 के पश्चात होगा। 21 मार्च को धुलंडी उत्सव मनाया जाएगा। जिसमे लोग एक दूसरे पर गुलाल व रंग डालकर यह उत्सव मनाते है। इसे रंगोत्सव के रूप में जाना जाता है। होलाष्टक से शुरू होने वाले कार्य  सबसे पहले होलाष्टक शुरू होने वाले दिन होलिका दहन के लिए स्थान चुनाव किया जाता है। उस स्थान को गंगाजल से शुद्ध करके उस स्थान पर होलिका डंडा स्थापित किया जाता है। प्रतिदिन उस स्थान पर सुखी लकड़िया, गोबर के सूखे उपले एकत्र कर रखे जाते है। जिससे होलिका दहन के दिन यहां लकड़ियों व उपलो...

बैसाखी पर्व 14 अप्रेल रविवार को मनाया जाएगा

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बैसाखी का त्योहार 14 अप्रेल रविवार, नवमी तिथि, पुष्य नक्षत्र और रविपुष्य योग में मनाई जाएगा। इस दिन से खरमास यानी मलमास भी समाप्त हो जाएगा। और सौर बैसाख माह का प्रारंभ होगा। जिससे 15 अप्रेल से मांगलिक कार्य विवाह, मुंडन,कर्णवेधन, ग्रहप्रवेह जैसे कार्य प्रारंभ हो जाएंगे। ज्योतिष गणना के अनुसार इस दिन सूर्य अपनी उच्च राशि मेष में प्रवेश करता है, जिसे मेष संक्रांति के नाम से मनाया जाता है। पंजाब और हरियाणा के किसान सर्दियों की फसल के पकने की खुशियों के साथ साथ नव वर्ष का उत्सव मनाते है। इस दिन अलग अलग राज्यो में अलग अलग नाम से पर्व मनाया जाता है। रंगोली बहु आसाम में, नाबा वर्षा बंगाल में, पुथन्दू तमिलनाडु में, पुरम विषय केरल में और बैशाख बिहार में मनाया जाता है।         बैसाखी त्योहार मनाने की परंपरा काफी प्राचीन है। लेकिन इस त्योहार से ऐतेहासिक घटनाये भी जुड़ी हुई है। इनमे 1699 में सिखों के दसवें गुरु संत  गुर गोविंद सिंह जी द्वारा खालसा पंथ की स्थापना हुई थी। इस दिन संत गुरु गोविंद सिंह जी द्वारा पंज प्यारो को दीक्षा देकर खालसा पंथ का सृजन किया था। 191...

Transit Rahu in mithun and ketu in dhanu rashi

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18 साल बाद छाया ग्रह राहु का अपनी उच्च राशि मिथुन में व केतु का धनु में प्रवेश होगा 7 मार्च प्रतिपदा तिथि, पूर्वभाद्रपद नक्षत्र, गुरुवार को प्रातः 2:48 बजे राहु ग्रह कर्क राशि से अपनी उच्च राशि मिथुन में व केतु ग्रह मकर राशि से धनु राशि मे प्रवेश करेंगे। शनि ग्रह के धनु राशि मे पूर्व से विराजमान होने के कारण धनु राशि मे शनि केतु की युति बनेगी। इसके साथ ही 30 मार्च शनिवार को गुरु ग्रह भी धनु राशि मे प्रवेश करेंगे। 149 वर्षो पश्चात यह सयोंग बनेगा, जब गुरु,शनि व केतु एक साथ धनु राशि मे होंगे। ये युति 22 अप्रेल तक रहेगी, गुरु 10 अप्रेल को वक्री होकर 22 अप्रेल को वृश्चिक राशि मे वापिस चले जायेंगे। और वृश्चिक राशि मे 11 अगस्त को मार्गीय होकर 5 नवम्बर को फिर से धनु राशि मे प्रवेश करेंगे, जो कि 24 अप्रेल 2020 तक शनि केतु के साथ युति करेंगे। राहु केतु छाया ग्रह होने के कारण इनका भौतिक रूप से कोई अस्तित्व नही है। उसके बावजूद यह अन्य ग्रहों से ज्यादा जातक को प्रभावित करते है। छाया ग्रह होने की वजह से यह हर समय साथ रहते है। अपनी दशा आने पर यह जातक पर पूर्ण रूप से हावी हो जाते है। इन्हें आक्...

Gudi Padwa Festival

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गुड़ी पड़वा का त्योहार हिन्दू नव वर्ष के शुरू होने का प्रतीक है गुड़ी पड़वा। यह पर्व मुख्यतः महाराष्ट्र में हिन्दू नव वर्ष के प्रारंभ होने की खुशी में मनाया जाता है। यह त्योहार 6 अप्रेल चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा के दिन मनाया जायेगा। गुड़ी का मतलब ध्वज यानी झंडा और पड़वा यानी प्रतिपदा तिथि होती है।         मान्यता है कि इसी दिन ब्रह्मा जी ने सृष्टि की रचना की थी। इसी दिन से चैत्र नवरात्र की भी शुरुआत होती है।      एक अन्य कथा के अनुसार शालिवाहन ने मिट्टी की सेना बनाकर उनमे प्राण फूंक दिए और दुश्मनों को पराजित किया । सम्राट शालिवाहन द्वारा शकों को पराजित करने के बाद लोगो ने घरों पर गुड़ी लगाकर खुशी का इजहार किया और इसी दिन शालिवाहन शंक का आरंभ भी माना जाता है ।     इसी दिन लोग आम के पत्तो से घर सजाते है। रंगोली और तोरण से द्वार बनाकर सजाते है। घर के आगे एक गुड़ी यानी झंडा रखा जाता है। जिसके ऊपर एक तांबे या पीतल का कलश उल्टा रख कर उसपर स्वस्तिक चिन्ह बनाया जाता है। और उस पर रेशम का कपड़ा लपेट दिया जाता है। इसके बाद गुड़ी को गाठी, नीम की...

chaitra Navratri par 9 sanyog

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चैत्र नवरात्रि पर नो दिंनो में नो सयोंग 6 अप्रेल शनिवार, शुक्लपक्ष की प्रतिपदा तिथि के दिन सुबह 6 बजकर 9 मिनट से लेकर 10 बजकर 19 मिनट के बीच घट स्थापना का शुभ मुहूर्त होगा। चैत्र मास हिन्दू पंचांग के अनुसार 6 अप्रेल को साल का नया वर्ष हिन्दू संवत्सर 2076 शुरू होगा। जिसमें ज्योतिषगण नव वर्ष के पंचांग का पूजन करेंगे। नव संवत्सर एवम् नवरात्र का योग शुभता लाता है। इस दिन पूजा अर्चना और दान का विशेष महत्व है। इसलिए अपने किसी भी शुभ व नए काम की शुरुआत करने के लिए नवरात्रि के नो दिन बहुत अच्छे माने गए है, जिसमे ग्रह प्रवेश, फैक्टरी, ऑफिस खोलना, नए वाहन खरीदना इत्यादि कार्य किये जा सकते है।       इस वर्ष नवरात्रि के नो दिनों में 9 शुभ सयोंग बन रहे है। जिसमे तीन सर्वार्थसिद्धि योग,  रवि योग, रवि पुष्य योग रहेंगे। ऐसे शुभ सयोंग में नवरात्रि पर देवी की उपासना करने पर विशेष फल की प्राप्ति होती है। 6 अप्रेल प्रतिपदा - घट स्थापना रेवती नक्षत्र में शैलपुत्री माता पूजा। 7 अप्रेल द्वितीया - सर्वार्थसिद्धि योग ब्रह्मचारिणी माता पूजा। 8 अप्रेल तृतिया - कार्य सिद्धि रवि योग च...