Gudi Padwa Festival
गुड़ी पड़वा का त्योहार
हिन्दू नव वर्ष के शुरू होने का प्रतीक है गुड़ी पड़वा। यह पर्व मुख्यतः महाराष्ट्र में हिन्दू नव वर्ष के प्रारंभ होने की खुशी में मनाया जाता है। यह त्योहार 6 अप्रेल चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा के दिन मनाया जायेगा। गुड़ी का मतलब ध्वज यानी झंडा और पड़वा यानी प्रतिपदा तिथि होती है।
मान्यता है कि इसी दिन ब्रह्मा जी ने सृष्टि की रचना की थी। इसी दिन से चैत्र नवरात्र की भी शुरुआत होती है।
एक अन्य कथा के अनुसार शालिवाहन ने मिट्टी की सेना बनाकर उनमे प्राण फूंक दिए और दुश्मनों को पराजित किया । सम्राट शालिवाहन द्वारा शकों को पराजित करने के बाद लोगो ने घरों पर गुड़ी लगाकर खुशी का इजहार किया और इसी दिन शालिवाहन शंक का आरंभ भी माना जाता है ।
इसी दिन लोग आम के पत्तो से घर सजाते है। रंगोली और तोरण से द्वार बनाकर सजाते है। घर के आगे एक गुड़ी यानी झंडा रखा जाता है। जिसके ऊपर एक तांबे या पीतल का कलश उल्टा रख कर उसपर स्वस्तिक चिन्ह बनाया जाता है। और उस पर रेशम का कपड़ा लपेट दिया जाता है। इसके बाद गुड़ी को गाठी, नीम की पत्तियों, आम के डंठल और लाल फूलो से उसे सजाया जाता है। ताकि इसे दूर से भी देखा जा सके।
इस दिन सूर्य देव की आराधना के साथ ही सुंदरकांड, रामरक्षा स्त्रोत्र और देवी भगवती के मंत्रों का जाप करने की परंपरा है।
ज्योतिषाचार्य सुनील चोपड़ा
हिन्दू नव वर्ष के शुरू होने का प्रतीक है गुड़ी पड़वा। यह पर्व मुख्यतः महाराष्ट्र में हिन्दू नव वर्ष के प्रारंभ होने की खुशी में मनाया जाता है। यह त्योहार 6 अप्रेल चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा के दिन मनाया जायेगा। गुड़ी का मतलब ध्वज यानी झंडा और पड़वा यानी प्रतिपदा तिथि होती है।
मान्यता है कि इसी दिन ब्रह्मा जी ने सृष्टि की रचना की थी। इसी दिन से चैत्र नवरात्र की भी शुरुआत होती है।
एक अन्य कथा के अनुसार शालिवाहन ने मिट्टी की सेना बनाकर उनमे प्राण फूंक दिए और दुश्मनों को पराजित किया । सम्राट शालिवाहन द्वारा शकों को पराजित करने के बाद लोगो ने घरों पर गुड़ी लगाकर खुशी का इजहार किया और इसी दिन शालिवाहन शंक का आरंभ भी माना जाता है ।
इसी दिन लोग आम के पत्तो से घर सजाते है। रंगोली और तोरण से द्वार बनाकर सजाते है। घर के आगे एक गुड़ी यानी झंडा रखा जाता है। जिसके ऊपर एक तांबे या पीतल का कलश उल्टा रख कर उसपर स्वस्तिक चिन्ह बनाया जाता है। और उस पर रेशम का कपड़ा लपेट दिया जाता है। इसके बाद गुड़ी को गाठी, नीम की पत्तियों, आम के डंठल और लाल फूलो से उसे सजाया जाता है। ताकि इसे दूर से भी देखा जा सके।
इस दिन सूर्य देव की आराधना के साथ ही सुंदरकांड, रामरक्षा स्त्रोत्र और देवी भगवती के मंत्रों का जाप करने की परंपरा है।
ज्योतिषाचार्य सुनील चोपड़ा
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