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Showing posts from June, 2019

मंगल ग्रह का नीच राशि मे प्रवेश, शत्रु ग्रह बुध के साथ बनेगी युति

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मंगल ग्रह का नीच राशि मे प्रवेश, शत्रु ग्रह बुध के साथ बनेगी युति 22 जून शनिवार आषाढ़ मास की षष्टी तिथि को रात्रि 11 बजकर 22 मिनट पर मंगल ग्रह मिथुन राशि से अपनी नीच राशि कर्क में प्रवेश करेंगे। मंगल अगले 47 दिनों तक नीच राशि मे रहेंगे। ज्योतिषाचार्य सुनील चोपड़ा ने बताया कि बुध ग्रह ने 20 जून को कर्क राशि मे प्रवेश किया है। कर्क राशि मे आपस मे शत्रु ग्रह मंगल व बुध की युति बनेगी। ये युति 8 अगस्त तक रहेगी।       ज्योतिषाचार्य सुनील चोपड़ा ने बताया कि मंगल ग्रह युद्ध का देवता है, साथ ही वीरता और मंगल कार्यो के भी सूचक है। मनुष्य के शरीर मे मंगल ऊर्जा प्रदान करने वाला ग्रह है।मंगल ग्रह का व्यक्ति के जीवन मे अहम स्थान है। मंगल ब्लड का कारक है और बुध त्वचा व सांस की नली का कारक है। मंगल के नीच राशि मे होने से व शत्रु ग्रह बुध की युति से जातको को अच्छे परिणाम नही मिलेंगे। त्वचा व सांस की बीमारियों से झूझना पड़ेगा। कफ व सर्दी जुकाम की अधिकता होगी। स्वास्थ्य खराब होने की आशंका बनी रहेगी। नुकसान पहुंचाने वाली मंगल की दशाएं कुंडली में छठे, आठवें या बारहवें भाव में बैठा मंगल ...

वर्षा ऋतु का प्रारंभ 21 जून से

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वर्षा ऋतु का प्रारंभ 21 जून से सूर्य के दक्षिणायन होते ही हो जाएगा जो 23 अगस्त तक रहेगा। उसके पश्चात शरद ऋतु का प्रारंभ होगा  जीवन में सभी ऋतुओं का महत्व है लेकिन सबसे अधिक महत्व वर्षा ऋतु का है जिसके कारण पृथ्वी की संपूर्ण जीवन प्रणाली चलती है लेकिन कभी-कभी अत्यधिक वर्षा के कारण कुछ हानि भी हो जाती है लेकिन इसके महत्व के आगे यह नगण्य है. वर्षा हमारी धरती के लिए बहुत आवश्यक है इसलिए इसके जल को सहेज कर रखना चाहिए और अधिक वर्षा हो इसलिए पेड़ पौधे लगाने चाहिए। जब सूर्य आर्द्रा नक्षत्र में आता है तो वर्षा प्रारम्भ होती है । यह नक्षत्र 22 जून को आषाढ़ मास कृष्णपक्ष की पंचमी तिथि को आएगा।       वर्षा आने के आठ नक्षत्र माने गए है। आर्द्रा, पुनर्वसु, पुष्य, अश्लेषा, मघा, पूर्व फाल्गुनी, उत्तराफाल्गुनी एवं हस्त नक्षत्र। ज्योतिषाचार्य सुनील चोपड़ा ने बताया की जब सूर्य इन नक्षत्र से भ्रमण करता है तो बारिश के योग बनते है।  इस बार अच्छी वर्षा के योग बने हुए  है। और आंधी तूफान के भी योग है।  इस वर्ष पहले नक्षत्र आर्द्रा का वाहन अश्व रहेगा। जो कि अ...

गुप्त नवरात्रि 3 जुलाई से प्रारंभ

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गुप्त नवरात्रि 3 जुलाई से प्रारंभ   गुप्त नवरात्रि 3 जुलाई बुधवार से प्रारंभ होकर 10 जुलाई बुधवार तक रहेगी। सप्तमी तिथि का क्षय होने के कारण अष्टमी व नवमी एक ही दिन की होगी। जिस प्रकार नवरात्रि में देवी के नौ रूपों की पूजा की जाती है, ठीक उसी प्रकार गुप्त नवरात्र में दस महाविद्याओं की साधना की जाती है। गुप्त नवरात्र के दौरान साधक मां काली, तारा देवी, त्रिपुर सुंदरी, भुवनेश्वरी, माता छिन्नमस्ता, त्रिपुर भैरवी, मां ध्रूमावती, माता बगलामुखी, मातंगी और कमला देवी की पूजा करते हैं। ज्योतिषाचार्य सुनील चोपड़ा ने बताया की नवरात्र में देवी की साधाना अधिक कठिन होती है। इन नवरात्रि में मानसिक पूजा की जाती है। रात के समय की गई गुप्त पूजा गुप्त मनोकामनाओं को पूरा करती हैं। व्यक्ति के पास धन-धान्य, ऐश्वर्या, सुख-स्मृद्धि और शांति की कोई कमी नहीं रहती। नवरात्र में इन देवियों की पूजा की जाती है नवरात्र के पहले दिन शैल पुत्री, दूसरे दिन ब्रह्मचारिणी, तीसरे दिन चंद्रघंटा, चौथे दिन कूष्माण्डा, पांचवें दिन स्कंदमाता, छठे दिन कात्यायनी, सातवें दिन कालरात्रि, आठवें दिन महागौरी, नौवें दिन सिद्धिद...

सायन पद्धति से 21 जून को सूर्य दक्षिणायन होगा

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सायन पद्धति के अनुसार सूर्य 21 जून को दक्षिणायन हो जाएगा जो 22 दिसम्बर तक रहेगा। जबकि निरयण पद्धति से यह समय 15 जुलाई से लेकर 14 जनवरी के बीच होता है।       ज्योतिषाचार्य सुनील चोपड़ा ने बताया कि ज्योतिष शास्त्र के अनुसार एक वर्ष में दो बार सूर्य की स्थिति में परिवर्तन होता है। इसे ही उत्तरायण व दक्षिणायन कहते है। जब सूर्य मकर राशि से मिथुन राशि तक भ्रमण करता है तब इस समय को उत्तरायण कहते है। और जब सूर्य कर्क राशि से धनु राशि तक भ्रमण करता है तो इसे दक्षिणायन कहते है।      कर्क संक्रांति के दिन सूर्य की किरणें कर्क रेखा पर सीधी पड़ने के बाद क्रमशः दक्षिण की और खिसकते हुए मकर संक्रांति के दिन मकर रेखा पर सीधी पड़ती है। सूर्य की सीधी किरणों के पड़ने के खिसकाव में छह माह लग जाते है। यह समय 21 जून से लेकर 22 दिसम्बर तक होता है। जबकि निरयण पद्धति में यह समय 15 जुलाई से 14 जनवरी के बीच होता है।       धार्मिक मान्यताओं के अनुसार दक्षिणायन का काल देवताओ की रात्रि है। दक्षिणायन के समय रातें लंबी हो जाती है और दिन छोटे होने लगते है। दक्षिणायन में...

15 जून को सूर्य के मिथुन राशि मे प्रवेश से बनेगा चतुर्ग्रही योग

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15 जून को सूर्य के मिथुन राशि मे प्रवेश से बनेगा चतुर्ग्रही योग 15 जून शनिवार शाम 5:38 बजे सूर्य देव वृषभ राशि से मिथुन राशि मे प्रवेश करेंगे जिससे मिथुन राशि मे चतुर्ग्रही योग बनेगा। मिथुन राशि मे मंगल, राहु व बुध के पूर्व में होने से त्रिग्रही योग बना हुआ है। सूर्य के प्रवेश से चतुर्ग्रही योग बनेगा जो की 21 जून तक यह योग बना रहेगा। ज्योतिषाचार्य सुनील चोपड़ा ने बताया की  22 जून सुबह 2:29 बजे बुध अपनी स्वराशि मिथुन छोड़कर चंद्रमा की राशि कर्क में प्रवेश करेगा। इसके पश्चात मिथुन राशि मे त्रिग्रही योग बना रहेगा। जो 22 जून रात्रि 11: 21 बजे मंगल के कर्क राशि मे प्रवेश से समाप्त होगा। जातको पर प्रभाव       राहु के साथ जब बुध मिथुन राशि मे होता है तो अधिक बलशाली हो जाता है। राहु का जिन जातकों पर प्रभाव होता है, वे जातक आत्मविश्वास से भरपूर, बहादुर व निडर होते है। मिथुन राशि मे मंगल व राहु की युति से अंगारक योग बना हुआ है जो की मंगल के कर्क राशि मे 22 जून को प्रवेश से समाप्त हो जाएगा

निर्जला एकादशी 13 जून रवि योग में मनेगी

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निर्जला एकादशी कब मनाई जाएगी  गुरुवार 13 जून जयेष्ठ मास के शुक्लपक्ष की एकादशी तिथि चित्रा नक्षत्र रवियोग में मनेगी। एकादशी तिथि 12 जून शाम 6:26 बजे से प्रारंभ होकर 13 जून शाम 4:49 बजे तक रहेगी। निर्जला एकादशी वर्ष की सबसे बड़ी एकादशी मानी जाती है। इसे भीमसेनी एकादशी भी कहते है। ऋषि वेदव्यास जी के अनुसार इस एकादशी को भीमसेन ने धारण किया था, इसी वजह से इस एकादशी का नाम भीमसेनी एकादशी पड़ा। निर्जला एकादशी व्रत से लाभ       ज्योतिषाचार्य सुनील चोपड़ा ने बताया की  इस एकादशी को व्रत करने से वर्ष की 23 एकादशियो के व्रत के समान फल मिलता है। मान्यता है कि इस एकादशी का व्रत करने से बाकी इस वर्ष की सभी 23 एकादशियो का पुण्य लाभ मिलता है तथा व्यक्ति को दीर्घायु व मोक्ष की प्राप्ति होती है। निर्जला अर्थात जल को बिना ग्रहण कर व्रत करना कहा जाता है। यह एक कठिन व्रत है जिसमे जल का सेवन नही किया जाता। निर्जला  एकादशी व्रत कैसे करे         इस व्रत में सबसे पहले ब्रह्मा बेल में उठकर गंगा स्नान या किसी भी नदी में स्नान करना चाहिए। उसके पश्च...

हस्त नक्षत्र में मनेगा गंगा दशहरा

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हस्त नक्षत्र में मनेगा गंगा दशहरा, दस योग के साथ अद्भुत सयोंग गंगा दशहरा 12 जून ज्येष्ठ माह, शुक्ल पक्ष, दशमी तिथि बुधवार के दिन हस्त नक्षत्र, रवियोग, सर्वार्थ सिद्धि योग में मनाया जाएगा। दशमी तिथि दिनांक 11 जून को रात्रि 8 :19 बजे से प्रारंभ होकर 12 जून शाम 6 : 26 बजे तक रहेगी। ज्योतिषाचार्य सुनील चोपड़ा ने बताया गंगा दशहरा पर एक साथ दस योग पड़ रहे है। सोमवती अमावस पर 6 योग बने, और दशमी पर रवियोग, सर्वार्थसिद्धि योग, हस्त नक्षत्र, वरियान योग, गर करन, आनंद योग व सूर्य वृषभ राशि मे तथा चंद्र कन्या राशि मे इसी के साथ अगले दिन निर्जला एकादशी पर्व मनाया जाएगा। वराह पुराण के अनुसार ज्येष्ठ मास, शुक्लपक्ष, दशमी तिथि, बुधवार के दिन हस्त नक्षत्र में स्वर्ग से धरती पर गंगा का अवतरण हुआ था। भगीरथ की तपस्या के पश्चात गंगा माता के धरती पर  अवतरण को ही गंगा दशहरा के नाम से जाना जाता है। इस दिन गंगा नदी में खड़े होकर दस डुबकी लगाने से दस प्रकार के पापो का नाश होता है। इन दस पापो में तीन पाप कायिक, चार पाप वाचिक, और तीन पाप मानसिक होते है। इन सभी से व्यक्ति को मुक्ति मिलती है।  ...