सायन पद्धति से 21 जून को सूर्य दक्षिणायन होगा
सायन पद्धति के अनुसार सूर्य 21 जून को दक्षिणायन हो जाएगा जो 22 दिसम्बर तक रहेगा। जबकि निरयण पद्धति से यह समय 15 जुलाई से लेकर 14 जनवरी के बीच होता है।

कर्क संक्रांति के दिन सूर्य की किरणें कर्क रेखा पर सीधी पड़ने के बाद क्रमशः दक्षिण की और खिसकते हुए मकर संक्रांति के दिन मकर रेखा पर सीधी पड़ती है। सूर्य की सीधी किरणों के पड़ने के खिसकाव में छह माह लग जाते है। यह समय 21 जून से लेकर 22 दिसम्बर तक होता है। जबकि निरयण पद्धति में यह समय 15 जुलाई से 14 जनवरी के बीच होता है।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार दक्षिणायन का काल देवताओ की रात्रि है। दक्षिणायन के समय रातें लंबी हो जाती है और दिन छोटे होने लगते है। दक्षिणायन में सूर्य दक्षिण की और झुकाव के साथ गति करता है। दक्षिणायन के दौरान वर्षा, शरद ऋतु, और हेमंत यह तीन ऋतुएं होती है। तथा आकाश बदलो से घिरा रहता है।
दक्षिणायन में विवाह, मुंडन, उपनयन आदि विशेष शुभ कार्य निषेध माने जाते है। सूर्य दक्षिणायन होने से इस बार वर्षा अधिक होगी। वायु में आद्रता बनी रहेगी। उमस का वातावरण रहेगा।
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार वर्षा के योग
वर्षा ऋतु का प्रारंभ 21 जून से सूर्य के दक्षिणायन होते ही हो जाएगा जो 23 अगस्त तक रहेगा। उसके पश्चात शरद ऋतु का प्रारंभ होगा।
जब सूर्य आर्द्रा नक्षत्र में आता है तो वर्षा प्रारम्भ होती है । यह नक्षत्र 22 जून को आएगा। वर्षा आने के आठ नक्षत्र माने गए है। आर्द्रा, पुनर्वसु, पुष्य, अश्लेषा, मघा, पूर्व फाल्गुनी, उत्तराफाल्गुनी एवं हस्त नक्षत्र।
जब सूर्य इन नक्षत्र से भ्रमण करता है तो बारिश आती है।
इस वर्ष ज्योतिष के अनुसार संवत्सर के राजा शनि व मंत्री सूर्य देवता है
और संवत्सर का नाम परिधावी है। इसलिए इस बार अच्छी वर्षा के योग बने हुए है। और आंधी तूफान के भी योग है।
वर्षा आने के दिन इस प्रकार रहेंगे, जब सूर्य आर्द्रा नक्षत्र में 22/23 जून, पुनर्वसु नक्षत्र में 6/7 जुलाई को, पुष्य नक्षत्र 20/21 जुलाई को व अश्लेषा नक्षत्र 3,4 अगस्त को भारी वर्षा के योग बनेंगे।
ज्योतिषाचार्य सुनील चोपड़ा
Comments
Post a Comment