भड़ली नवमी 10 जुलाई को अबूझ मुहूर्त Bhadli Navami puja vidhi

भड़ली नवमी 10 जुलाई को अबूझ मुहूर्त

10 जुलाई बुधवार आषाढ़ शुक्लपक्ष की नवमी को भड़ली (भडल्या) नवमी पर्व मनाया जायेगा। नवमी तिथि व रवि योग होने से इस दिन गुप्त नवरात्रि का समापन भी होता है। पौराणिक शास्त्रों के अनुसार भड़ली नवमी का दिन भी अक्षय तृतीया के समान ही महत्व रखता है अत: इसे अबूझ मुहूर्त मानते हैं तथा यह दिन शादी-विवाह को लेकर खास मायने रखता है। इस दिन बिना कोई मुहूर्त देखे विवाह की विधि संपन्न की जा सकती है।

जिनका विवाह मुहूर्त नही निकलता है यदि उनका विवाह इस दिन किया जाए, तो उनका वैवाहिक जीवन हर तरह से संपन्न रहता है, उनके जीवन में किसी प्रकार का व्यवधान नहीं होता।

यह गुप्त नवरात्र का अंतिम दिन रवियोग में मनाया जायेगा। इस दिन में ज्यादातर तांत्रिक पूजा की जाती है। गुप्त नवरात्र में आमतौर पर ज्यादा प्रचार प्रसार नहीं किया जाता, अपनी साधना को गोपनीय रखा जाता है विशेष पूजा और मनोकामना जितनी ज्यादा गोपनीय होगी, सफलता उतनी ही ज्यादा और जल्दी मिलेगी
इस दिन किए गए कार्य शुभ व समृद्धि दायक होते हैं। यह अपने आप में स्वयंसिद्ध है। जिसमें लक्ष्मी-नारायण की पूजा-अर्चना विशेष फलदायी है। शास्त्रों के अनुसार इसी दिन इंद्राणी ने व्रत पूजन के प्रभाव से इंद्र को प्राप्त किया था। इसी वजह से भड़ली नवमी पर आभूषण, वाहन, भवन और भूमि आदि की खरीदी में हर वर्ष तेजी दिखाई देती है।

 भड़ली नवमी के पश्चात 12 जुलाई को देवशयनी एकादशी से चार माह तक देव विश्राम करेगें, इसलिए चार माह तक विवाह मुहूर्त नही होंगें।और चातुर्मास प्रारम्भ हो जाएगा। 8 नवम्बर शुक्रवार के पश्चात विवाह मुहूर्त प्रारम्भ होंगे।
भड़ली नवमी पर पूजा विधि
ज्योतिषाचार्य सुनील चोपड़ा ने बताया की इस साधना काल में आसन पर बैठना चाहिए। अर्चनकर्ता को स्नानादि से शुद्ध होकर धुले कपड़े पहनकर मौन रहकर अर्चन करना चाहिए।अर्चन के पूर्व पुष्प, धूप, दीपक व नैवेद्य लगाना चाहिए। अर्चन में बिल्वपत्र, हल्दी, केसर या कुंकुम से रंग चावल, इलायची, लौंग, काजू, पिस्ता, बादाम, गुलाब के फूल की पंखुड़ी, मोगरे का फूल, किसमिस, सिक्का आदि का प्रयोग शुभ व देवी को प्रिय है। यदि अर्चन एक से अधिक व्यक्ति एक साथ करें तो नाम का उच्चारण एक व्यक्ति को तथा अन्य व्यक्तियों को नमः का उच्चारण अवश्य करना चाहिए
दीपक इस तरह होना चाहिए कि पूरी अर्चन प्रक्रिया तक प्रज्वलित रहे।
अर्चन के उपयोग में प्रयुक्त सामग्री अर्चन उपरांत किसी  ब्राह्मण, मंदिर में देना चाहिए। कुंकुम से भी अर्चन किए जा सकते हैं। इसमें नमः के पश्चात बहुत थोड़ा कुंकुम देवी पर अनामिका-मध्यमा व अंगूठे का उपयोग करके चुटकी से चढ़ाना चाहिए
ज्योतिषाचार्य सुनील चोपड़ा

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