kartik purnima vrat 29 november 2020
*कार्तिक मास का पूर्णिमा व्रत 29 को,स्नान दान 30 नवंबर को मनाया जाएगा*
कार्तिक मास का पूर्णिमा व्रत 29 नवम्बर को व स्नान दान 30 नवम्बर सोमवार सर्वार्थसिद्धि योग में होगा। क्योंकि कार्तिक पूर्णिमा 29 नवंबर दोपहर 12 बजकर 47 मिनट से प्रारम्भ होकर 30 नवंबर दोपहर 02 बजकर 59 मिनट तक रहेगी। पूर्ण चंद्रमा 29 नवम्बर को रात्रि में होने के कारण पूर्णिमा का व्रत 29 को व 30 नवंबर को सुबह दान-स्नान किया जाएगा।
कार्तिक मास को बारह मासों में सबसे श्रेष्ठ माना जाता है। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा के साथ-साथ, श्री कार्तिकेय की भी पूजा का विधान है।
मान्यता है कि इस दिन गंगा में डुबकी लगाने से सारे पापो का नाश होता है।
ज्योतिषाचार्य सुनील चोपड़ा (शास्त्री) ने बताया कि इस समय कोरोना काल के चलते गंगा में डुबकी लगाना व अधिक लोगो का एकत्रित होना खतरनाक हो सकता है, इसलिए घर मे ही रहकर बाल्टी में गंगाजल डाल कर स्नान करने से पूर्ण फल प्राप्त होगा।
आखिरी चंद्र ग्रहण 30 नवंबर को होगा, यह एक उपच्छाया ग्रहण के रूप में दिखाई देगा जो कि रोहिणी नक्षत्र में लगेगा, जिसका कोई असर नही होगा और न ही कोई सूतक लगेगा।
कार्तिक पूर्णिमा के दिन व्रत रखा जाता है, इस दिन व्रत रखने से हजार अश्वमेध यज्ञ का फल प्राप्त होता है। इस दिन गौ, अश्व और घी आदि के दान से संपत्ति में बढ़ोतरी होती है।
कार्तिक पूर्णिमा पर जीवाजी गंज स्थित 400 साल पुराने कार्तिकेय मंदिर के पट खुलेंगे, जो कि साल में एक बार कार्तिक पूर्णिमा पर खोले जाते है। यहां इस दिन श्रद्धालु कार्तिकेय भगवान के दर्शन को आते है। मंदिर में सिर्फ कार्तिकेय ही नहीं बल्कि उनके साथ गंगा, यमुना, सस्वती और त्रिवेणी की मूर्तिया भी स्थापित है।
इस दिन पुजारी भगवान कार्तिकेय का श्रंगार और अभिषेक करते हैं।
इसी दिन भगवान विष्णु का प्रथम अवतार हुआ था। प्रथम अवतार के रूप में भगवान विष्णु मत्स्य के रूप में प्रकट हुए थे। इसलिए इस दिन भगवान विष्णु व लक्ष्मी जी की पूजा की जाती है और घर में सत्यनारायण की कथा की जाती है, भगवान को खीर और हलवे का भोग लगाया जाता है।
एक पौराणिक कथा के अनुसार इसी दिन सृष्टि के रचियता ब्रह्मा जी ब्रह्म सरोवर पुष्कर में अवतरित हुए थे। कहा जाता है कि राजस्थान के पुष्कर में ही ब्रह्मा जी का एक मात्र मंदिर है। इस दिन इस मंदिर में विशेष पूजा-अर्चना की जाती है।
इसी दिन ही भगवान शिव ने त्रिपुरा नाम के राक्षस का अंत किया था। इस वजह से कई स्थानों पर इस पूर्णिमा को त्रिपुरी पूर्णिमा भी कहते हैं इस दिन दीपदान करने का भी विशेष महत्व होता है। दीपदान से सभी देवताओं का आशीर्वाद मिलता है।
ज्योतिषाचार्य सुनील चोपड़ा (शास्त्री)
Gwalior 9302325222
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